रविवार, 31 दिसंबर 2017

मेवाड़ का राजवंश* राजवंश की प्राचीनता, गौरव और राजचिन्ह







🔖


01=जनवरी =2018

Written by jashwant Singh Dodia tikana-kotela

मेवाड़ राजवंश की प्राचीनता


उदयपुर(मेवाड़) राज्य का इतिहास स्वतंत्रता का इतिहास है और राजपूताने के सम्पूर्ण इतिहास में मेवाड़(उदयपुर) के सिसोदिया राजवंश का इतिहास ही सबसे अधिक गौरवपूर्ण है। इस तथ्य से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि मेवाड़ के इतिहास को गौरवमय बनाने में मेवाड़ के वीर सपूतों तथा यहां के जागीरदारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने इस वीर भूमि की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देकर स्वामिभक्ति एवं कर्तव्य परायणता का उत्कृष्ट परिचय दिया। ऐसे गौरवशाली इतिहास के बारे में पढ़ना गौरव की बात है।

     वीर प्रसूता मेवाड की धरा राजपूती प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक तथा सम्बल है। राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी अंचल का यह राज्य अधिकांशतः अरावली की अभेद्य पर्वत श्रृंखला से परिवेष्टिता है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण से अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। मेवाड अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे।



उदयपुर का सिसोदिया राजवंश पद-प्रतिष्ठा में हिन्दुस्तान के सब राजपूत राजाओं में शिरोमणि और बड़ा है। समस्त हिन्दू जिन्हें ईश्ववर का अवतार मानते है सूर्यवंशी मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र, मेवाड़ राजवंश इन्ही के वंशज है। श्रीराम के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंश में उदयपुर राजवंश का होना माना जाता है। कुश के वंश में विक्रम संवत 625(ई० सन 568) के आस पास मेवाड़ में गुहिल नाम के प्रतापी राजा हुए, जिनके नाम से उनका वंश गुहिल वंश कहलाया। बाद में इस वंश की एक शाखा सिसोदा गांव में रही, जिससे इस शाखावाले उस गांव के नाम पर सिसोदिया कहलाये। इस सिसोदिया की राणा शाखा के वंशज मेवाड़ के महाराणा है।


राजस्थान को पूर्व में राजपुताना के नाम से जाना जाता था जिसका अर्थ है राजाओं का स्थान और सामन्यतया राजपूत, राजपुत्र समझे जाते है, जिसका अभिप्राय है कि अंततोगत्वा सभी राजपूत, कोई दो हजार वर्ष पूर्व स्थापित राजवंशो में से किसी एक से है।


मेवाड़ के राजाओं का खानदान पहले सूर्यवंशी, फिर गुहिलपुत्र और गुहिलोत और उसके बाद सिसोदिया के नाम से प्रसिद्ध रहा है। मेवाड़ का राजवंश विक्रम सम्वत 625(ई० सन 568) से लगातार स्वतंत्र भारत में राज्यो के विलय होने तक लगातार एक ही प्रदेश पर राज्य करता रहा। गत 1400 वर्षो में हिन्दुस्तान के एक ही प्रदेश पर राज्य करने वाला संसार भर में दूसरा कोई अन्य राजवंश शायद ही विधमान हो।

राजवंश का गौरव


मेवाड़ का राजवंश गौरव में सूर्यवंशियों में भी सर्वोपरि माना जाता है और भारत के सभी राजपूत राजाओं में मेवाड़ के महाराणाओं को शिरोमणि माना गया है। इसका मुख्य कारण उनकी स्वतंत्रप्रियता और अपने धर्म पर दृढ़ रहना है। गत 1400 वर्षो में हिन्दुस्तान में कई प्राचीन राज्य लुप्त हो गए और अनेक नये स्थापित हुए। सैकड़ो हिन्दू राजाओं ने मुसलमानों के राज्य की प्रबल शक्ति के आगे सर झुकाकर अपनी वंश परम्परा की मान-मर्यादा को उसके चरणोमे समर्पित कर दिया, परन्तु एक मेवाड़(उदयपुर) का ही राजवंश, जो संसार के समस्त राजवंशो में सबसे प्राचीन है, अनेक प्रकार के कष्ट और आपत्तियां सहकर भी कभी साहस नही ख़ोया। वे अपनी मान-मर्यादा, कुल गौरव, स्वतंत्रप्रियता और जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए सांसारिक सुख-सम्पति ऐश्वर्य को त्यागकर भी अनवरत जूझते रहे। इसी कारण मेवाड़ के महाराणाओं को

हिन्दुआ सूरज

कहते है।


इस राज घराने ने कभी किसी मुसलमान बादशाह को लड़की(अपनी बहन, बेटी) की शादी नहीं कराई और कई वर्षों तक उन राजपूतो के साथ शादी व्यवहार छोड़ दिया, जिन्होंने बादशाहो को लड़की दी थी। मेवाड़ का खानदान भगवान श्रीराम के बड़े बेटे कुश के वंशज है इसलिये हिन्दुस्तान के सभी हिन्दू राजाओं में बड़ा गिना जाता है। मेवाड़ के वीर अपने देश, जाती, आदर्श और अपने कुल मर्यादा की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देने में सदैव अग्रणी रहे।


सिसोदिया राजवंश में महाराणा कुम्भा, राणा सांगा एवं वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धाओं के नाम राजपूताने के इतिहास में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और गौरवशाली रहे है। मेवाड़ के इतिहास् को उज्जवल और गौरवमय बनाने का अधिक श्रेय इन्ही को है। स्वदेश प्रेम, स्वतंत्रता और कुलाभिमान उनके मूलमंत्र थे। उन्हें अपने वीर पूर्वजो के गौरव का गर्व था। उनका आदर्श था, कि बप्पा रावल का वंशज किसी के आगे सिर नहीं झुकायेगा।

मेवाड़ राज्य का पुराना झण्डा लाल कपड़े का था और उस पर महावीर हनुमान का चिन्ह अंकित था परंतु जो रेशमी झण्डा महारानी विक्टोरिया के भारत राजराजेश्वरी(साम्रागी) पदवी ग्रहण करते समय वि.स्. 1933 की पोषसुदी 12 गुरुवार(ई. सन 1876 तारीख 28 दिसम्बर) के दिल्ली दरबार में अंग्रेज सरकार से भेंट रूप में मिला है। उसके बिच में सूर्य की मूर्ति है क्योंकि उदयपुर मेवाड़ के आर्यवंश दिवाकर छतिस राजकुल श्रंगार महाराणा साहब अपने को सूर्यवंशी मानते है। सूर्य के दाहिनीं तरफ जिरह बख्तर पहिने झेलम टॉप लगाये और शस्त्र बांधे हुए एक राजपूत खड़ा है और बाँयी तरफ नग धड़ंग एक भील वीर का चित्र है। इससे ज्ञात होता है कि इस राज्य की रक्षा आदिम निवासी भीलो और राजपूतो से हुई है। इसके नीचे एक पंक्ति में राज्य के शासन का मोटो यानि आदर्श इन अक्षरों में चित्रित है।

जशवन्त सिंह डोडिया ठिकाना-कोटेला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भीम सिंह डोडिया

Dodia rajput sardargarah THAKUR BHIM SINH DODIA > दूसरा सन्धि प्रस्ताव :- दूत :- कुंवर मानसिंह कछवाहा (आमेर) जून, 1573 ...