💜 शिशोदाभेरूजी री महिमा💚
- इतिहास
- महाराणा प्रताप की रणभूमि हल्दीघाटी से 30 कीलोमीटर उत्तर में एवं श्री नाथजी की पावन नगरी नाथद्धारा से 20 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में यह आदर्श गांव स्थित है।
- इतिहास -
- सिंह गमन साख वचन, केल फले एकबार।
- त्रिया तेल, हम्मीर हठ चढे न दुजी बार।।
- शिशोदा गांव का इतिहास मेवाड राजवंश से झुडा हुआ है ऐसा माना जाता है कि भगवान सुर्य के 63 वीं पीढी में भगवान रामचन्द्रजी के पुत्र कुश हुए तथा कुश से 59 वीं पीढी में राजा सुमित्र हुए सुमित्र के 13 वे वंशधर विजयभुत ने अयोघ्या से निकलकर दक्षिण भारत को विजय कीया। वि. सं. 580 में शत्रुओं के आक्रमण के कारण वल्लभीपुर का पतन होना तथा शिलादित्य के मारे जाने पर उनकी सगर्भा रानी पुष्पावती का मेवाड में आना और गुहदत्त गुहिल नामक पुत्र का उत्पन होना तथा उसी का मेवाड राजवंश का आदि पुरुष होना लिखा है।
- राजा गुहिल के बाद 33 वी पीढी मे राजा कर्णसिंह हुए उस समय शिशोदा पर राव रोहितास्व भील का राज हुआ करता था। राहप ने रोहितास्व को पराजित कर अपना आधिपत्य जमाया। उसके बाद राहप ने मालवा के मोकल पडिहार को पराजित कर उसकी राणा की पदवी छिन ली इसीके पश्चात शिशोदा के शासक के साथ राणा शब्द जुडा एवं कालान्तर में हम्ी के चित्तोड पर कब्जा करने के पश्चात मेवाड के शासक महाराणा कहयाये।राहप ने सरसलजी पालीवाल को अपना पुरोहित नियुक्त कीया तथा कुल देवी बायण माता की स्थापना की। राहप द्धारा ही मेर बस्ती में भगवान भोलनाथ के मन्दिर की स्थापना की जो वर्तमान में सरसल महादेव के नाम से प्रख्यात है।
- राजा कर्णसिंह के दौ पुत्र हुए बडे पुत्र खेमसिंह ने चित्तौड की राजधानी चित्रकुट तथा छोटे पुत्र के वंशज राणा क पदवी पाकर शिशोदा की जागीर प्राप्त की।
- राणा राहप के 12 वी पीढी में लक्ष्मण सिंह के दो पुत्र अरिसिंह व अजयसिंह हुए। अरिसिंह की मृत्यु के पश्चात शिशोदा की जागीर का आधिपत्य अजयसिंह के पास आ गया। उस समय पाली गोडवाडा का मुन्जावालेया नामक राजपुत्र डकेत था जो मेवाड में लुट मार करता था जिससे यहां की जनता परेशान थी। अजयसिंह ने अपने दोनो पुत्रो सजन्नसिंह तथा खेमसिंह को उस डकेत का सजा देने के लिए बाध्य कीया परन्तु दोनो भाई इसमें नाकाम रहे तो
- अजयसिंह ने अपने बडे भाई के पुत्र हमीर जो अभी कीशोर था को इस काम का आदेश दिया। हमीर ने इस कार्य को उस डकेत का सिर काट अपने चाचा का भेंट कर पुरा कीया इससे अजयसिंह प्रसन्न हो गये तथा उसे अपना उत्तराधिकारी धोषित कर दीया। इससे अजयसिंह के दोनो पुत्र खेमसिंह तथा सजन्नसिंह नाराज हो कर दक्षिण में चले गये। इसी सज्जनसिंह के वंश में मराठो का राज्य स्थापित करने वाले शिवाजी महाराज हुए थे।
- हमीरसिंह ने वि. स. 1383 के आसपास शिशोदा की राणा शाखा का राज्य स्थापित कर महाराणा का पद धारण कीया। ऐसा माना जाता है की शिशोदा राजवंश के शासक ही भारत के विभिन्न राज्यो जैसे काठीयावाड मे भावनगर, पालीताणा, लाठी, वला गुजरात में राजपीपला धरमपुर मध्यभारत में रामपुरा, बडवाना महाराष्ट में मुधोल, कोल्हापुर, सावन्तवाडी नेपाल में तथा मेंवाड में प्रतापगढ, देवलिया, डुंगरपुर, बांसवाडा, शाहपुरा, बनेडा आदि फेले हुए थे।
- वर्तमान -
- राजस्थान मंे पंचायती राज की स्थापना के पश्चात यह गांव भी पंचायती राज का हीस्सा बन गया।गावं में, बा्रहा्रण, राजपुत, जैन, सोनी, सुथार, लुहार, रेबारी, कुम्हार, नाई, दर्जी, तेली, भील, बलाई एवं हरिजन जाति के लोग रहते है जो मुख्य गांव एवं भागलो मे रहते है। गांव का विस्तार निम्नानुसार है -
- 1- मुख्य गॉंव
- 2- खरवडो की भागल
- 3- भाटडा की भागल
- 4- मोकेला
- 5- हीम की भागल
- 6- गरडा की भागल
- 7- मेडी वाली भागल
- 8- तलायां की भागल
- 9- नंगावतो की भागल
- 10- परमारो की भागल
- 11- रेबारियो की ढाणी
- 12- खरवडो की भागल
- 13- पडियारो की भागल
- 14- वीडा की भागल
- 15- दुधी वेरी
- 16- राठौडो का गुडा
- 17- सतलेवा
- 18- कुमावतो की भागल
- 19- पतावतो की भागल
- 20- कंथारी छापर
- 21- भाणा की भागल
- 22- पटला की भागल
- 23- होडा की भागल
- 24- नाथावतो की भगल
- 25- हीरावतों की भागल
- 26- कचोडीया की भागल
- 27- बन्दा की भागल
- 28- खानावतो की भागल
- 29- अटाटीया जुना
- 30- अटाटीया नयां
- गांव में बिराजित खेतपाल बावजी की बडि महीमा है एवं इस मन्दिर से आस पास के कई गांवो के लोग झुडे हुए है। रविवार के दिन बावजी की सेवा होती है तथा इस दिन दर्शनो के लिए लोगो का मेला लगा रहता है। वर्तमान में यह गांव इस मन्दिर के कारण प्रसिद्ध है।
- पास के प्रमुख शहरो नाथद्धारा, उदयपुर एवं केलवाडा से आवागमन के लिए समय समय पर प्राईवेट बसे उपलब्ध है।
- कृषि के द्रश्टिकाण से गांव में मुख्यत दो ही फसलो मक्का एव गेहु की पैदावार बहुतायत मे होती है इसके अलावा ग्वार,ितल्ली,सरसो,मुंग,चमला,तारामीरा आदि अनाजो की पैदावार भी कही कही होती है। मसालो में प्याज एवं लहसुन की भी कही कही पैदावार की जाती है। पशुधन के रुप में मुख्य रुप से गाय,भैस एवं बकरी पाली जाती है इसके साथ साथ खेती के लिए कीसानो द्धारा बैल भी पाले जाते है।
- वर्तमान मे गांव चिकलवास तालाब परियोजना से जोडने के बाद पीने के पानी की माकुल व्यवस्था हो गयी है। गांव मे सिचाई के पानी के लिए एक तालाब जिससे नहरे निकाल कर सिंचाई की जाती है तथा साथ ही परम्परागत सिचाई के साधनो का भी उपयोग कीया जाता हैं।
- गांव मे शिक्षा के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय,कन्या विद्यालय, प्राथमिक विद्यालयए,राजीव गांधी पाठशालाए, आंगनवाडी केन्द्र एवं प्राइवेट विद्यालय है। स्वास्थ के लिए आयुर्वेदिक औषधालय हैं।
- गांव कई लोग व्यवसाय एवं रोजगार के लिए गांव को छोडकर शहरो मे चले गये है इसमे में भी जैन जाति के लोगो की संख्या अधिक हैं। कुछ लोगों द्धारा जिविकोपार्जन के लिए क्रशि एवं मजदुरी का कार्य कीया जाता है। इनके अलाव कुछ जाति के लोग अपना पुस्तैनी या परम्परागत व्यवसाय भी करते है जैसे सोनी, दर्जी, नाई, कुम्हार, सुथार एवं लुहार।
- मनोरंजन के लिए गांव में गवरी,गैर नृत्य,गरबा,भजन मंडली आदि का आयोजन होता है तथा साथ ही टेलीविजन एवं मोबाइल का उपयोग बहुतायत में होने लगा है।
- इतिहास
- महाराणा प्रताप की रणभूमि हल्दीघाटी से 30 कीलोमीटर उत्तर में एवं श्री नाथजी की पावन नगरी नाथद्धारा से 20 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में यह आदर्श गांव स्थित है।
- इतिहास -
- सिंह गमन साख वचन, केल फले एकबार।
- त्रिया तेल, हम्मीर हठ चढे न दुजी बार।।
- शिशोदा गांव का इतिहास मेवाड राजवंश से झुडा हुआ है ऐसा माना जाता है कि भगवान सुर्य के 63 वीं पीढी में भगवान रामचन्द्रजी के पुत्र कुश हुए तथा कुश से 59 वीं पीढी में राजा सुमित्र हुए सुमित्र के 13 वे वंशधर विजयभुत ने अयोघ्या से निकलकर दक्षिण भारत को विजय कीया। वि. सं. 580 में शत्रुओं के आक्रमण के कारण वल्लभीपुर का पतन होना तथा शिलादित्य के मारे जाने पर उनकी सगर्भा रानी पुष्पावती का मेवाड में आना और गुहदत्त गुहिल नामक पुत्र का उत्पन होना तथा उसी का मेवाड राजवंश का आदि पुरुष होना लिखा है।
- राजा गुहिल के बाद 33 वी पीढी मे राजा कर्णसिंह हुए उस समय शिशोदा पर राव रोहितास्व भील का राज हुआ करता था। राहप ने रोहितास्व को पराजित कर अपना आधिपत्य जमाया। उसके बाद राहप ने मालवा के मोकल पडिहार को पराजित कर उसकी राणा की पदवी छिन ली इसीके पश्चात शिशोदा के शासक के साथ राणा शब्द जुडा एवं कालान्तर में हम्ी के चित्तोड पर कब्जा करने के पश्चात मेवाड के शासक महाराणा कहयाये।राहप ने सरसलजी पालीवाल को अपना पुरोहित नियुक्त कीया तथा कुल देवी बायण माता की स्थापना की। राहप द्धारा ही मेर बस्ती में भगवान भोलनाथ के मन्दिर की स्थापना की जो वर्तमान में सरसल महादेव के नाम से प्रख्यात है।
- राजा कर्णसिंह के दौ पुत्र हुए बडे पुत्र खेमसिंह ने चित्तौड की राजधानी चित्रकुट तथा छोटे पुत्र के वंशज राणा क पदवी पाकर शिशोदा की जागीर प्राप्त की।
- राणा राहप के 12 वी पीढी में लक्ष्मण सिंह के दो पुत्र अरिसिंह व अजयसिंह हुए। अरिसिंह की मृत्यु के पश्चात शिशोदा की जागीर का आधिपत्य अजयसिंह के पास आ गया। उस समय पाली गोडवाडा का मुन्जावालेया नामक राजपुत्र डकेत था जो मेवाड में लुट मार करता था जिससे यहां की जनता परेशान थी। अजयसिंह ने अपने दोनो पुत्रो सजन्नसिंह तथा खेमसिंह को उस डकेत का सजा देने के लिए बाध्य कीया परन्तु दोनो भाई इसमें नाकाम रहे तो
- अजयसिंह ने अपने बडे भाई के पुत्र हमीर जो अभी कीशोर था को इस काम का आदेश दिया। हमीर ने इस कार्य को उस डकेत का सिर काट अपने चाचा का भेंट कर पुरा कीया इससे अजयसिंह प्रसन्न हो गये तथा उसे अपना उत्तराधिकारी धोषित कर दीया। इससे अजयसिंह के दोनो पुत्र खेमसिंह तथा सजन्नसिंह नाराज हो कर दक्षिण में चले गये। इसी सज्जनसिंह के वंश में मराठो का राज्य स्थापित करने वाले शिवाजी महाराज हुए थे।
- हमीरसिंह ने वि. स. 1383 के आसपास शिशोदा की राणा शाखा का राज्य स्थापित कर महाराणा का पद धारण कीया। ऐसा माना जाता है की शिशोदा राजवंश के शासक ही भारत के विभिन्न राज्यो जैसे काठीयावाड मे भावनगर, पालीताणा, लाठी, वला गुजरात में राजपीपला धरमपुर मध्यभारत में रामपुरा, बडवाना महाराष्ट में मुधोल, कोल्हापुर, सावन्तवाडी नेपाल में तथा मेंवाड में प्रतापगढ, देवलिया, डुंगरपुर, बांसवाडा, शाहपुरा, बनेडा आदि फेले हुए थे।
- वर्तमान -
- राजस्थान मंे पंचायती राज की स्थापना के पश्चात यह गांव भी पंचायती राज का हीस्सा बन गया।गावं में, बा्रहा्रण, राजपुत, जैन, सोनी, सुथार, लुहार, रेबारी, कुम्हार, नाई, दर्जी, तेली, भील, बलाई एवं हरिजन जाति के लोग रहते है जो मुख्य गांव एवं भागलो मे रहते है। गांव का विस्तार निम्नानुसार है -
- 1- मुख्य गॉंव
- 2- खरवडो की भागल
- 3- भाटडा की भागल
- 4- मोकेला
- 5- हीम की भागल
- 6- गरडा की भागल
- 7- मेडी वाली भागल
- 8- तलायां की भागल
- 9- नंगावतो की भागल
- 10- परमारो की भागल
- 11- रेबारियो की ढाणी
- 12- खरवडो की भागल
- 13- पडियारो की भागल
- 14- वीडा की भागल
- 15- दुधी वेरी
- 16- राठौडो का गुडा
- 17- सतलेवा
- 18- कुमावतो की भागल
- 19- पतावतो की भागल
- 20- कंथारी छापर
- 21- भाणा की भागल
- 22- पटला की भागल
- 23- होडा की भागल
- 24- नाथावतो की भगल
- 25- हीरावतों की भागल
- 26- कचोडीया की भागल
- 27- बन्दा की भागल
- 28- खानावतो की भागल
- 29- अटाटीया जुना
- 30- अटाटीया नयां
- गांव में बिराजित खेतपाल बावजी की बडि महीमा है एवं इस मन्दिर से आस पास के कई गांवो के लोग झुडे हुए है। रविवार के दिन बावजी की सेवा होती है तथा इस दिन दर्शनो के लिए लोगो का मेला लगा रहता है। वर्तमान में यह गांव इस मन्दिर के कारण प्रसिद्ध है।
- पास के प्रमुख शहरो नाथद्धारा, उदयपुर एवं केलवाडा से आवागमन के लिए समय समय पर प्राईवेट बसे उपलब्ध है।
- कृषि के द्रश्टिकाण से गांव में मुख्यत दो ही फसलो मक्का एव गेहु की पैदावार बहुतायत मे होती है इसके अलावा ग्वार,ितल्ली,सरसो,मुंग,चमला,तारामीरा आदि अनाजो की पैदावार भी कही कही होती है। मसालो में प्याज एवं लहसुन की भी कही कही पैदावार की जाती है। पशुधन के रुप में मुख्य रुप से गाय,भैस एवं बकरी पाली जाती है इसके साथ साथ खेती के लिए कीसानो द्धारा बैल भी पाले जाते है।
- वर्तमान मे गांव चिकलवास तालाब परियोजना से जोडने के बाद पीने के पानी की माकुल व्यवस्था हो गयी है। गांव मे सिचाई के पानी के लिए एक तालाब जिससे नहरे निकाल कर सिंचाई की जाती है तथा साथ ही परम्परागत सिचाई के साधनो का भी उपयोग कीया जाता हैं।
- गांव मे शिक्षा के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय,कन्या विद्यालय, प्राथमिक विद्यालयए,राजीव गांधी पाठशालाए, आंगनवाडी केन्द्र एवं प्राइवेट विद्यालय है। स्वास्थ के लिए आयुर्वेदिक औषधालय हैं।
- गांव कई लोग व्यवसाय एवं रोजगार के लिए गांव को छोडकर शहरो मे चले गये है इसमे में भी जैन जाति के लोगो की संख्या अधिक हैं। कुछ लोगों द्धारा जिविकोपार्जन के लिए क्रशि एवं मजदुरी का कार्य कीया जाता है। इनके अलाव कुछ जाति के लोग अपना पुस्तैनी या परम्परागत व्यवसाय भी करते है जैसे सोनी, दर्जी, नाई, कुम्हार, सुथार एवं लुहार।
- मनोरंजन के लिए गांव में गवरी,गैर नृत्य,गरबा,भजन मंडली आदि का आयोजन होता है तथा साथ ही टेलीविजन एवं मोबाइल का उपयोग बहुतायत में होने लगा है।
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