सोमवार, 8 जनवरी 2018

झंडेवालन देवी


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१८ श सताब्दी तक यहा जगह घने जंगल से भरा हुआ था। अराबाली परबत रेंज से लंबे हुए जंगल यहाँ तक लगा हुआ था। लोक कथा के अनुसार दिल्ली के चंदिनी चौक इलाका का एक धर्मप्राण ब्यक्ति बद्रि दास ने स्वप्नादेश पाया की यहाँ के झरना के नीचे एक प्राचीन मंदिर था। खोदाई करने से इधर एक प्राचीन मंदिर मिला और शक्ति देबी का एक मूर्ति भी मिला। खोदन के समाया इसी मूर्ति का एक हाथ टूट गया था। सज्जन बद्रि दास ने इसी जगह पर एक मंदिर बनबाया और मूर्ति के टूटे हुए हाथ मे चाँदी के हाथ लगाकर उसे गुंफा मे स्थापन किया और ऊपर बने हुए मंदिर में नए मूर्ति बनाकर दोनों जगह में पूजा अर्चना का ब्याबस्था किया।  
मंदिर के ऊपर एक बहुत ऊंचे झंडे लगाया गया था , जो दूर दराज से भी दिखाई देते है। इसी कारण मंदिर का नाम " झंडेवाले " मंदिर रहा था। ऊपर मंदिर प्रांगण मे शिब लिंग भी स्थापन किया गया है। पुराने देबी मूर्ति को " गुंफा बाली माँ " कहा जाता है। । 

इसी मंदिर में दुर्गापूजा और नवरात्रि बहुत शान के साथ पालन किया जाता है। उत्शब के समाया यहाँ बहुत भक्तों का आगमन होता है। 

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भीम सिंह डोडिया

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