शनिवार, 6 जनवरी 2018

कांकरोली व नाथद्वारा की होली(राजसमंद 
सबसे पहले तो सभी विजीटर भाईयों बहिनों को होली की शुभकामनाएँ व बधाईयां ! लो जी फिर से आ गई आपकी, हमारी, सबकी प्यारी होली। होली का त्योहार तरह तरह के रंगो से भरा हुआ एसा एक त्योहार है कि हर कोई ईसके रंग मे रंग जाता है। हमारे यहां काकंरोली नाथद्वारा मे होली कि अलग अलग रस्में हैं, परम्पराएँ हैं। कांकरोली में होलीथडा करके स्थान है जहां होली के कुछ दिन पहले एक बडी लम्बी सी होली रोपी जाती है। होली की शाम को वहां बडा मेला लगता है, गांव शहर के कई लोग मेले को देखने आते हैं (बडा अमां ये तो छोटा सा स्थान है भई) कई ग्रामीण व शहरी लोग गोबर के कन्डे जेसी (वडुलिये की माला) आदी अपने अपने घरों से बना कर लाते है,एसा लगता है कुछ विशेष महत्व है पर हमें कुछ खास इस बारे में पता नही। कई बार हमने अल सुबह भी जाकर होलीका दहन का नजारा देखा है ग्रहण के कारण मुहुर्त का चक्कर होता है तो होली कई बार सुबह जल्दी जलाई जाती है तो कई बार शाम को मेले के पश्चात। कुछ लोग होलीका दहन के दौरान लीलवे(चने) भी सेकतें है व खाते है।

कांकरोली के द्वारिकाधीश मंदिर व नाथद्वारा के श्रीनाथ जी के मन्दिर में होली के दिन खास दर्शन होते हैं प्रभु को विशेष भोग लगाया जाता है व खास रुप से श्रंगारित किया जाता है। खास तौर से मन्दिर में राल के दर्शन होते हैं जिसमें भगवान को होली खिलाई जाती है। मंदिर में भक्तगण परुष व महिलाएँ रसिया गाते हैं। द्वारिकाधीश मंदिर से होली की शाम को शोभायात्रा निकली जाती है जो कि मंदिर से चालु होती हुई, शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई होलीथडा स्थान पर पहुंचती है। ततपश्वात शुभ मुहुर्त से होलीका का दहन किया जाता है। शोभायात्रा में कई प्रकार की झांकिया, हाथी, घोडे उंट आदि होते है, भक्तगण नाचते, गाते हुए मस्ती में होली की इस शोभायात्रा में भाग लेते हैं ।

होलीका दहन मे दौरान ही ढ़ुंढ़ का भी प्रचलन है ये ढ़ुंढ़ बडा ही निराला उत्सव है जो की जलती हुई होली के सम्मुख मनाया जाता है। हिन्दु लोगों के घरों मे होली के त्योहार के पहले जन्मे हुए बच्चों को घर की महिलाएं जलती हुई होली की परिक्रमा कराती है, और ततपश्चात अगले दिन परिवारजन बच्चे को कपडे, मिठाईयां,  जेवर व अन्य उपहार आशिर्वाद सहित देते हैं, व बच्चे की लम्बी उम्र व खुशहाली की कामना करते हैं। मेजबान लोग मेहमानों का स्वागत करते है व उन्हें विशेष स्वादिष्ट भोजन कराया जाता है जिसमें चावल, व लपसी का एक महत्वपुर्ण स्थान होता है।

इस तरह से हमारे यहां होली के पावन पर्व को मनाया जाता है । अगला दिन होता है धुलण्डी या धुरेली का दिन । ये भी होली के नाम से जाना जाता है, इस दिन सभी लोग अबीर, गुलाल व, पक्के रंगो से एक दुसरे को रंगते है। फिर आपस में गले मिलते हैं व होली की शुभकामनाएँ एक दुसरे को देते हैं। हमारे कांकरोली व नाथद्वारा में होली के दिन ठण्डाई, भांग व भांग के पकोडे का सेवन करने का भी रिवाज है। ब्रजवासी बंधुओं के देनिक रुटिन का एक मुख्य कार्य होता है भांग छानना व वे हरदम दुनिया की टेन्शन से दूर एकदम चक रहना ही पसन्द करते हैं। युवा लोग चंग, ढ़ोलक की थाप पर नाचना गाना भी पसन्द करते हैं व इस तरह से वे होली का पुरा आनन्द लेते हैं। घरों में महिलाएं खट्टा व मीठा (दुध व मक्का के सम्मिश्रण से बना विशेष पकवान) औलिया बनाती हैं व यह खाया जाता है। होली खेलने के बाद, घरों मे पानी की बचत के हिसाब से काफी लोग राजसमन्द, नन्दसमन्द  झील पर जाकर नहाना पसन्द करते हैं। रंगो से सराबोर हुए परुष महिलाओं के नहाने के कारण झील के किनारे के आसपास का पानी भी रंगीन हो उठता है, मानो वो भी सभी को होली की शुभकामनाएँ देता हुआ कहता है  “हेप्पी होली हैप्पी होली ।

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भीम सिंह डोडिया

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